वेदव्यास जी का जीवन परिचय और रोचक बाते
पुराणों के रचियता वेद व्यास जी कहानी
Know About the writer of Mahabharata and 18 Puraan Ved Vyas ji .
“वेदव्यास ” इस नाम से ही इनकी महिमा का पता चलता है | यह महान ज्ञानी त्रिकाल दर्शी और ज्ञान के सबसे बड़े ऋषि थे | इन्होने जटिल वेद को चार भागो में विभक्त कर दिया जो है ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद। इन्होने फिर उन्हें आगे और विभक्त कर १८ महापुराणों की रचना थी | इन्होने महाभारत ग्रन्थ के रचियता के रूप में भी जाना जाता है | यह ग्रन्थ इतना बड़ा था की उन्हें इसके लिए भगवान श्री गणेश की मदद लेनी पड़ी | आइये आज हम जानते है वेदव्यास जी के जीवन के बारे में कुछ रोचक बाते |
जन्म और माता पिता
भागवत के अनुसार वेदव्यास जी भगवान विष्णु के १७वे कला अवतार थे सत्यवती के गर्भ से पराशर पिता द्वारा उत्पन्न हुए | उस समय मनुष्यों की समझ और धारणा शक्ति कम थी इसलिए वेदों को विभक्त और सरल बनाने के लिए इनका जन्म हुआ | इनका जन्म यमुना के एक दीप पर हुआ और यह श्याम रंग के थे अत: इनका एक अन्य नाम कृष्णद्वैपायन भी है |
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आषाढ़ माह की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है | यह दिन व्यास जयंती का दिन है अर्थात इस दिन पुराणों के रचियता वेदव्यास जा का जन्म भी हुआ था | वे गुरुओ के भी गुरु है |
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धृतराष्ट्र और पांडू के थे ताऊ
सत्यवती के वेदव्यास जी के अलावा एक पुत्र विचित्रवीर्य थे जो हस्तिनापुर के महाराज थे | वे निसंतान ही अपनी दो पत्नियों को छोड़ कर परलोक चले गये | तब माता सत्यवती ने वेदव्यास जी से विनती करी की वे अपनी यौगिक शक्तियों से रानियों को एक एक पुत्र पाने का आशीर्वाद दे | तब वेदव्यास जी के आशीर्वाद से एक रानी के धृतराष्ट्र तो अन्य रानी के पांडु पुत्र की प्राप्ति हुई | जन्मांध होने के कारण छोटे बेटे पांडू को हस्तिनापुर का राजा नियुक्त किया गया |
दूरदर्शी और ज्ञानी विदुर का जन्म
दो रानियों के अलावा वेदव्यास जी ने एक दासी को भी योगमाया से गर्भवती किया जिसके जो पुत्र प्राप्त हुआ वो विदुर के नाम से प्रसिद्ध हुआ |
संजय को दी दिव्य द्रष्टि
कौरव और पांडवो के बीच कुरुक्षेत्र के मैदान पर जब युद्ध शुरू होने वाला था तब धृतराष्ट्र उस युद्ध को देखना चाहते थे | इसी कारण उन्होंने वेदव्यास जी से विनती करी की वे संजय को दिव्य नेत्र प्रदान करे जिससे की वो महल में ही बैठे बैठे सम्पूर्ण युद्ध के समाचार उन्हें बता सके | तब वेद व्यासजी ने उनके अनुरोध पर उनकी विनती स्वीकार की |
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