कैसे हुआ वानरराज बालि और सुग्रीव का जन्म ?
रामायण को जानने वालो को अच्छे से पता है कि सुघ्रीव और बालि भाई भाई थे और श्री राम ने बालि का वध कर सुघ्रीव को उसका राज्य किष्किन्धा फिर से दिला दिया था | बालि पुत्र अंगद ने बाद में लंका में हुए वानर असुर संग्राम में श्री राम का भरपूर साथ दिया |
रामायण देखने के बाद एक प्रश्न जरुर दर्शकगणों में दिमाग में उठता है कि कैसे बालि और सुघ्रीव का जन्म हुआ | क्यों इन दोनों भाइयो को देवता पुत्र बताया गया आदि |

ये अलग अलग देवताओ के पुत्र कैसे थे ? साथ ही वे इतने शक्तिशाली कैसे बने आदि |
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तो चलिए इस पोस्ट उन सभी प्रश्नों के उत्तर दिए जा रहे है |
आनंद रामायण में एक प्रसंग में अगस्त मुनि ने इन दोनों वानर भाइयो के जन्म की कथा सुनाई है | एक बार मेरु पर्वत पर बैठे ब्रह्मा के नेत्र से एक प्रसन्नचित अवस्था में अश्रु गिरा जिसे उन्होंने अपने हाथ में लेकर जमीन पर गिरा दिया | उस अश्रु से एक महान कपि का जन्म हुआ | उनका नाम ऋक्षविरजा रखा गया | वे वही एकान्त में रहने लगे और कंद मूल फल खाकर जीवित रहते थे |

एक बार वे पर्वत के दुसरे पार एक दिव्य बावली में स्नान करने गये | उस बावली में स्नान करके जब बाहर निकले तो उनका रूप एक सुन्दर युवती के रूप में बदल गया | वह स्त्री बहुत ही कामुक और यौवन से पूर्ण थी | सहसा आकाश मार्ग से जाते हुए देवराज इन्द्र की नजर उस रूपयौवना पर पड़ी और उनका वीर्य स्खलित हो गया | वो वीर्य उस स्त्री के बालो में गिरा और उससे बालि का जन्म हुआ |
अगले दिन फिर सूर्य देव भी उस स्त्री को देखकर कामातुर होकर वीर्य स्खलित कर दिए | वो वीर्य उस स्त्री की गर्दन पर गिया और उससे सुघ्रीव का जन्म हुआ |
इस प्रकार बाली के औरस पिता इंद्र देव और सुघ्रीव के औरस पिता सूर्य देव थे | अगले दिन वो स्त्री फिर से अपने वानर रूप में आ गयी और उन दोनों बच्चो का पालन करने लगी |