श्री राम वनवास के दौरान किन किन स्थानो पर ठहरे थे
पुराने उपलब्ध प्रमाणों और राम अवतार जी के शोध और अनुशंधानों के अनुसार कुल १९५ स्थानों पर राम और सीता जी के पुख्ता प्रमाण मिले हैं जिन्हें ५ भागों में वर्णित कर रहा हूँ
सिंगरौर :- यह वनवास का पहला पड़ाव था | यह गंगा घाटी के तल पर प्रयागराज से 35 किमी की दुरी पर है | इसी स्थान पर केवट प्रसंग हुआ था |
कुरई : केवट ने गंगा पार करवाकर श्री राम , सीता और लक्ष्मण को इसी स्थान पर छोड़ा था |
प्रयाग : कुरई के बाद वे तीनो प्रयागराज में ठहरे थे जहा तीनो महान नदियों का संगम होता है |
चित्रकूट इसी स्थान पर भरत श्री राम को अपने साथ अयोध्या ले जाने के लिए आते है | पर श्री राम अपने स्वर्गवासी पिता के वचन को पूर्ण करने के लिए वापिस लौटना अस्वीकार कर देते है | तब भरत उनके चरण पादुका को सिर पर धरकर अयोध्या ले आते है |

सतना : वनवास यात्रा का है यह तीसरा पड़ाव था जो मध्य प्रदेश में स्तिथ है | यह अत्रि ऋषि का आश्रम था | यहाँ इन्होने कई दैत्यों को राक्षसों का संहार किया |
दंडक वन : यहा श्री राम 10 साल तक रुके | यह छतीसगढ़ के घने जंगल है |
पंचवटी : महाराष्ट के नासिक में गोदावरी नदी तट पर पांच वृक्षों के बीच पंचवटी में रुके |
पंपा सरोवर : केरल में तुंगभद्रा और कावेरी नदी को पार कर इस स्थान पर सबरी से मिले और उसके बैर खाए |
सर्वतीर्थ : नासिक क्षेत्र में शूर्पणखा, मारीच और खर व दूषण के वध के बाद ही रावण ने सीता का हरण किया और जटायु का भी वध किया जिसकी स्मृति नासिक से 56 किमी दूर ताकेड गांव में ‘सर्वतीर्थ’ नामक स्थान पर आज भी संरक्षित है।

ऋष्यमुख : इसी स्थान पर वानरराज बाली का वध किया गया |
कोड्डीकराई : यहा श्री राम ने सुघ्रीव के साथ मिलकर वानर सेना का गठन किया | फिर यही से समुन्द्र की ओर प्रस्थान किया |
रामेश्वरम : यहा भगवान शिव की आराधना के लिए रामेश्वरम शिवलिंग का निर्माण श्री राम ने किया था | उनकी पूजा अर्चना कर सेतु बंधन का कार्य शुरू किया गया |
धनुषकोडी : यात्रा का 12वा पड़ाव | इसी स्थान से सेतु बंधन का कार्य नल नील से शुरू किया था | यही से समुन्द्र के माध्यम से जल्दी ही लंका जाया जा सकता था |
नुवारा एलिया : यात्रा का 13 वा पड़ाव सेतु बंधन के बाद श्री लंका का यह भाग जिसमे पत्थर पहाड़ मौजदू थे | इसके बाद ही रावण का महल था |
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